Dismissal after 16 years of service on complaint cancelled | 16 साल नौकरी के बाद शिकायत पर बर्खास्तगी रद्द: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ललितपुर के मामले कहा-र्याप्त दस्तावेज हैं कि वह रमा देवी खरे का दत्तक पुत्र है – Prayagraj (Allahabad) News
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 16 वर्ष सेवा के बाद किसी की शिकायत पर हटाए गए कर्मचारी को राहत प्रदान करते हुए यह निर्देश दिया कि यदि याची कि नियुक्ति वैध पाई जाती है तो नियुक्ति प्राधिकारी याची को काम नहीं वेतन नहीं के सिद्धांत पर सेवा में सतत मानते हुए उसे ला
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यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने ललितपुर के प्रकाश खरे की याचिका पर उसके अधिवक्ता और दूसरे पक्ष के वकील को सुनकर दिया है। वर्ष 1995 में अनुकंपा नियुक्ति के आधार पर क्लर्क पद पर नियुक्ति पाने वाले याची 2011 में आरटीआई के आधार पर किसी अन्य की शिकायत पर यह आरोप लगाकर सेवा से हटा दिया गया था कि वह दिवंगत शिक्षिका रमा देवी खरे का दत्तक पुत्र नहीं है। याची के वकील ने कोर्ट को बताया कि याची को 16 अगस्त 1995 को अनुकंपा के आधार पर शिक्षिका मां रमा देवी खरे की सेवा के दौरान मृत्यु होने पर नियुक्त किया गया था। याची ने अपनी नियुक्ति के समय सभी आवश्यक दस्तावेज जिनमें गोदनामा पत्र भी शामिल था जमा कर दिए थे। लेकिन 16 वर्ष सेवा के बाद 2011 में एक अज्ञात शिकायतकर्ता की शिकायत के बाद याची के खिलाफ जांच बैठाई गई। याची ने नोटिस पर अपना उत्तर प्रस्तुत किया।
उक्त परिस्थितियों में 13 अक्टूबर 2011 को सेवा से हटाने का आदेश इस आधार पर किया गया कि याची कोई भी सबूत प्रस्तुत करने में विफल रहा कि उसे रमा खरे ने गोद लिया था। यानी पंजीकृत दत्तक ग्रहण विलेख की कॉपी और ऐसे दस्तावेज के अभाव में स्पष्ट रूप से उसे सेवा से बर्खास्त करने का निर्णय लिया गया। क्योंकि ऐसे दस्तावेज के अभाव में वह डाइंग इन हार्नेस रूल्स 1974 के तहत अनुकंपा नियुक्ति के उद्देश्य से परिवार की परिभाषा में नहीं आता। पिछले 14 वर्षों से अधिक समय से लंबित इस याचिका में उक्त आदेश को चुनौती दी गई।
याची के अधिवक्ता ने अपनी बहस में कहा कि याची द्वारा दाखिल अतिरिक्त शपथपत्र और दस्तावेजों में प्रमाणित किया गया कि वह वैधानिक रूप से गोद लिए गए थे। साथ ही यह भी बताया कि उसके खिलाफ दर्ज एफआईआर में फाइनल रिपोर्ट लग चुकी है और अदालत द्वारा स्वीकृत भी की गई है।
सुनवाई के बाद कोर्ट ने कहा कि बर्खास्तगी आदेश के प्रारंभिक भाग के अनुसार याची स्वयं बर्खास्तगी के आदेश का सामना करने का दोषी है। वर्ष 2011 में तीन सदस्यीय समिति के समक्ष जो दस्तावेज प्रस्तुत किए जाने थे, उन्हें न केवल प्रस्तुत किया गया, बल्कि उक्त दस्तावेज याचिका के साथ प्रस्तुत नहीं किए गए और अब 13 वर्ष से अधिक समय के बाद उन्हें अभिलेख में प्रस्तुत किया गया है, जो संभवतः बाद के अधिवक्ता की अच्छी सलाह के कारण है। ऐसी परिस्थितियों में न्यायालय का मत है कि अब याची के पास पर्याप्त दस्तावेज हैं कि वह रमा देवी खरे का दत्तक पुत्र है।
साथ ही परिवार का कोई अन्य सदस्य इस न्यायालय के समक्ष कोई आपत्ति करने के लिए आगे नहीं आया है इसलिए बर्खास्तगी आदेश निरस्त किया जाता है और याची को यह साबित करने के लिए दस्तावेज प्रस्तुत करने की छूट दी जाती है। यह स्पष्ट किया जाता है कि यदि याची की नियुक्ति वास्तविक पाई जाती है तो 13 अक्टूबर 2011 से नए आदेश की तिथि तक की अवधि को काम नहीं तो वेतन नहीं माना जाएगा।