Abhishek of Lord Jagannath with Ganga water from 84 Ghats | 84 घाटों के गंगा जल से प्रभु जगन्नाथ का जलाभिषेक: भक्तों के प्रेम में भीगकर भगवान होंगे बिमार,14 दिनों तक काढ़े का करेंगे सेवन – Varanasi News
धर्म नगरी काशी में ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा तिथि पर भगवान जगन्नाथ को जलाभिषेक की परंपरा है। गर्मी से परेशान भक्त हर साल गंगा जल से भगवान स्नान कराते है। भक्तों द्वारा कराए जानें वाले इस स्नान के कारण अगले दिन भगवान जगन्नाथ भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा बी
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मंदिर के छत पर बनाया गया है प्रभु का सिंहासन।
84 घाटों का गंगा जल,तुलसी माला,फल लेकर पहुंच रहे भक्त
भोर से ही भक्त प्रभु को जल, तुलसी की माला और फल चढा रहे है। यह सिलसिला देर शाम तक जारी रहेगा। मंदिर गर्भगृह के छत पर भगवान का सिंहासन लगा है जहां वह दर्शन दे रहे। भगवान को आज गुलाबी वस्त्र पहनाया गया है। यहां जलाभिषेक करने के लिए काशीवासियों के साथ साथ अन्य राज्यों से भी भक्त पहुंच रहे हैं। मान्यता है कि जो जगन्नाथ पुरी मंदिर नहीं जा पाते हैं उनको काशी में ही उतना फल मिलता है भगवान जगन्नाथ के दर्शन करके। वाराणसी के अस्सी क्षेत्र में स्थित भगवान जगन्नाथ का मंदिर पुरातत्व विभाग के अनुसार 1711 ईसवी का है।

आज गुलाब वस्त्र धारण कर प्रभु जगन्नाथ अपने भाई-बहन संग दर्शन दे रहे।
भगवान को परवल के काढ़े का भोग
भगवान जगन्नाथ मंदिर के प्रधान पुजारी पंडित राधेश्याम पांडेय ने बताया ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को जब गर्मी की अधिकता होती है तो उस दिन देव प्रतिमाओं को जल से स्नान कराया जाता है। इस स्नान के बाद तीनों देवता बीमार पड़ जाते हैं और फिर वह एकांतवास में चले जाते हैं। एकांतवास की इस प्रक्रिया को पुरी में ‘अनासरा’ कहते हैं। इन 15 दिनों में देव विग्रहों के दर्शन नहीं होते हैं। 15 दिनों के बाद जब जगन्नाथ जी ठीक होते हैं तब उस दिन ‘नैनासार उत्सव’ मनाया जाता है। इस दिन भगवान का फिर से श्रृंगार किया जाता है, उन्हें नए वस्त्र पहनाए जाते हैं और इसके बाद वह भ्रमण के लिए तैयार होते हैं। उन्होंने बताया 27 जून को रथयात्रा पर मेली की शुरुआत होगी प्रभु वहीं तीन दिन भक्तों को दर्शन देंगे।

51 मिट्टी के का कलश लेकर पहुंचे नगर के लोग।
आइए अब जानते हैं श्रद्धालु ने क्या कहा…
अनीता ने बताया कि आज भगवान जगन्नाथ जी को हम सभी जल चढ़ाते हैं। भगवान को इतना जल अर्पित होता है, कि वह बीमार पड़ जाते हैं। उसके बाद भगवान को काढ़ा दिया जाता है। हम सभी रोज भगवान की भक्ति भाव सेवा में पहुंचते हैं। उन्होंने कहा कि हम पिछले 25 वर्षों से हर वर्ष भगवान को जल चढ़ाने आते हैं।
पंडित वेंकट रमण घनपाठी ने बताया कि यह मंदिर काफी पुराना है। आज भगवान के मंदिर में जल उत्सव मनाया जा रहा है। भगवान को आज बहुत सारा जल चढ़ाया जाएगा। भगवान को सुबह से शाम तक इतना जल चढ़ाया जाएगा, कि वह बीमार पड़ जाएंगे। उसके बाद भगवान का मंदिर बंद हो जाएगा। इन्हें 15 दिन काढ़ा पिलाया जाएगा। उन्होंने कहा कि यह मंदिर काफी प्राचीन है। यह दर्शन करने सभी राज्यों से श्रद्धालुओं आते हैं।