Childhood with guns, youth with guns | बंदूक से बचपन, बंदूक से जवानी: ये है लखनऊ के सुनील की कहानी, दादा और पिता भी लड़ चुके हैं जंग – Chinhat(Lucknow) News


नीरज सिंह/संजना सिंह | लखनऊ4 मिनट पहले

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‘जंग’ परिवार की जंग में यह तीसरी पुश्त थी, जिसकी कहानी सुनकर रोंगटे खड़े हो जाएंगे। जोश से आपका दिल भर जाएगा और आंसू तो निकलेंगे, लेकिन गर्व से। कारगिल की लड़ाई चल रही थी, मानो सरहद पर गोलियों की दीवाली हो रही है। देश की आन को माथे पर लगाए लखनऊ का बेटा आगे बढ़ रहा था। न गोलियों का डर था, न मौत की परवाह। दिल में सिर्फ एक जुनून था- भारत मां की रक्षा का। बटालिक की पहाड़ी खून से लाल हो रही थी। हर बूंद पर हर जवान अपना नाम लिखने को बेताब था। इस दौड़ में सबसे आगे थे सुनील जंग महत।

15 मई की वो भयानक रात… जब बटालिक सेक्टर में चोटी को कब्जा करने का टास्क सुनील की पलटन को मिला था। दोस्त बताते हैं कि वो गोलियों की भीड़ में आगे ही बढ़ता चला गया। पीछे मुड़कर देखा ही नहीं। दोनों तरफ से बम और गोलियों की बरसात हो रही थी।

ये वही लखनऊ का लाल है, जो बचपन से ही बंदूकों से खेलता रहा है। दादा ने चीन के साथ तो पिता ने पाकिस्तान के साथ जंग लड़ी। यही जज्बा उसके अंदर भी बचपन से खौल रहा था। मौका मिला तो पाकिस्तानियों को धूल चटाते हुए अपनी जान दे दी। शायद एक गोली पर सुनील का नाम लिखा था। सनसनाते हुए आई और सिर को चीरते हुए निकल गई।

सुनील जंग की मां रुंधे गले से कहती हैं कि मुझे इस बार वो जगह देखनी है, जहां मेरे बेटे ने देश के लिए अपनी जान दे दी। वहां जाऊंगी, जाकर देखूंगी और उन हवाओं को महसूस करूंगी, जहां मेरे बेटे ने अंतिम सांस ली। यह कहते हुए अपनी साड़ी के पल्लू से वो गीली आंखों को छुपाने की कोशिश करने लगी। करें भी क्यों न, शहीद की मां जो हैं। फिर हाथ उठे और पल्लू से अपने बेटे की तस्वीर को इस तरह से पोछने लगीं जैसे वो अभी उनकी गोद में अपना सिर रख देगा।

कारगिल विजय दिवस के 26 साल पूरे हो चुके हैं। दैनिक भास्कर की टीम शहीद सुनील जंग के घर पहुंची और परिजनों से मुलाकात की तो जंग की दास्तां सुनते समय ऐसा लगा कि हम जंग के मैदान में पहुंच गए हों।

यह शहीद सुनील जंग की मां बीना महत हैं।

यह शहीद सुनील जंग की मां बीना महत हैं।

‘द्रास न जाती तो रह जाता मलाल’

शहीद सुनील जंग की मां उन पलों को याद कर रो पड़ीं, जो उन्होंने अपने बेटे के साथ बिताए थे। उनके लिए वो पल आज भी उतने ही तकलीफदेह हैं, जितने उस दिन थे जब उनके बेटे ने देश के लिए प्राण न्योछावर किए थे। घर में मां, पिता और छोटी बहन सोनी रहते हैं, जबकि बड़ी बेटी की शादी हो चुकी है। मां ने बताया, “मुझे इस बार कारगिल विजय दिवस में शामिल होने का निमंत्रण मिला है। मेरी हमेशा से ये इच्छा रही है कि मैं द्रास जाऊं, वो जगह देखूं जहां मेरे बेटे ने आखिरी सांस ली। अगर इस बार मैं नहीं जाती तो मुझे जिंदगीभर इस बात का अफसोस रहता।”

यह फोटो ओडिसा में आयोजित एक फैंसी ड्रेस प्रतियोगिता की है, जिसमें सुनील जंग एक फौजी बने थे।

यह फोटो ओडिसा में आयोजित एक फैंसी ड्रेस प्रतियोगिता की है, जिसमें सुनील जंग एक फौजी बने थे।

8 साल की उम्र में निभाया फौजी का रोल

मां ने सुनील जंग के बचपन के किस्से को याद करते हुए बताया, “सुनील का सपना बचपन से ही सेना में जाने का था। जब वह सिर्फ 8 साल के थे तो ओडिसा के एक फैंसी ड्रेस प्रतियोगिता में भाग लिया, जिसमें फौजी बने। सुनील के पापा भी फौज में थे, तो मैंने उन्हीं की ड्रेस को काट-छांटकर सुनील के नाप की यूनिफॉर्म बनाई। उसने पापा की टोपी और बूट पहने। एक प्लास्टिक की बंदूक भी खरीदी गई। मंच पर सुनील ने जोश से कहा था, ‘मैं अपने देश के लिए खून का एक-एक कतरा बहाऊंगा।’ देश से बचपन में किया वादा उसने जवानी में निभाया।”

शहीद सुनील जंग की मां बीना महत कहती हैं, 'हम सब गर्मी की छुट्टी में घूमने जाने वाले थे। सिर्फ सुनील के लौटने का इंतजार था। वो लौटा, लेकिन तिरंगे में लिपटकर।'

शहीद सुनील जंग की मां बीना महत कहती हैं, ‘हम सब गर्मी की छुट्टी में घूमने जाने वाले थे। सिर्फ सुनील के लौटने का इंतजार था। वो लौटा, लेकिन तिरंगे में लिपटकर।’

‘आने का वादा था, तिरंगे में लौटा’

मां बीना महत ने बेटे की शहादत के दिन को याद करते हुए कहा, “एक दिन कुछ अधिकारी घर आए। सबके चेहरे उतरे हुए थे, लेकिन कोई कुछ बोल नहीं रहा था। मैंने उनसे पूछा कि मैंने सुनील को कई बार पार्सल भेजे थे, क्या उसे मिल गए? बहुत दिनों से उसका कोई खत भी नहीं आया, मुझे चिंता हो रही है। इसके बाद भी किसी ने कुछ नहीं कहा।”

“थोड़ी देर बाद अधिकारियों ने सुनील के पापा को अलग ले जाकर बताया कि सुनील अब इस दुनिया में नहीं रहा। यह सुनते ही उसके पिता के पैरों तले जमीन खिसक गई। जवान बेटे की शहादत की खबर सुनते ही घर में मातम पसर गया। छोटी बहनें बार-बार बेहोश हो रही थीं और मेरे ऊपर जो गुजरी उसे आज भी मैं शब्दों में नहीं बयान कर सकती।”

“सुनील जनवरी में आया और फरवरी में वापस लौट गया। छुट्टी पर जाते समय मुझसे कहा था कि मां सामान पैक कर लेना, गर्मी की छुट्टी में घूमने चलेंगे। मैंने घर में सब कुछ तैयार कर रखा था, बस उसके लौटने का इंतजार था। वो लौटा, लेकिन तिरंगे में लिपटकर।”

शहीद सुनील जंग को फोटोग्राफी का बहुत शौक था। बहन सोनी कहती हैं, "भइया सलमान खान के बहुत बड़े फैन थे।"

शहीद सुनील जंग को फोटोग्राफी का बहुत शौक था। बहन सोनी कहती हैं, “भइया सलमान खान के बहुत बड़े फैन थे।”

सरहद से ताबूत में लौटे सुनील जंग

मां बीना महत ने नम आंखों से बताया, “हर साल लखनऊ में हमारे घर के पास उर्स का मेला लगता था। मैं हर बार वहां जाती थी, चादर चढ़ाती थी। साल 1999 में न जाने क्यों मेरा मन नहीं हुआ। उस साल न मैं मेले में गई, न चादर चढ़ाई। बस दिन भर एक कमरे में अकेले बैठी रहती थी और टीवी पर कारगिल की खबरें देखती थी। एक दिन टीवी पर देखा कि दिल्ली में कई ताबूत रखे हैं, जिनमें कारगिल के शहीद जवानों के पार्थिव शरीर हैं। मुझे क्या मालूम था, उन्हीं ताबूतों में एक मेरा बेटा भी होगा।”

राइफलमैन सुनील जंग महत की यह तस्वीर पोस्टिंग के दौरान की है।

राइफलमैन सुनील जंग महत की यह तस्वीर पोस्टिंग के दौरान की है।

पढ़िए कारगिल की लड़ाई में सुनील जंग की बहादुरी के किस्से

राइफलमैन सुनील जंग महत को 10 मई 1999 को उनकी यूनिट 1/11 गोरखा राइफल्स की एक टुकड़ी के साथ कारगिल भेजा गया। पांच दिनों तक सुनील जंग लगातार मोर्चे पर डटे रहे। दोनों तरफ से धुआंधार फायरिंग चल रही थी। वह अपनी टुकड़ी के साथ लगातार आगे बढ़ रहे थे कि 15 मई को भीषण गोलीबारी शुरू हो गई। सुनील जंग की राइफल भी दुश्मनों पर कहर बनकर बरस रही थी। इसी बीच दुश्मन की एक गोली उनके सिर में लगी और और वो गिर पड़े। 15 मई को सुनील जंग रणभूमि में वीरगति को प्राप्त हुए।

यह तस्वीरें शहीद सुनील जंग के बचपन की है, जिसमें वह अपने दोस्त, बहन और माता-पिता के साथ हैं।

यह तस्वीरें शहीद सुनील जंग के बचपन की है, जिसमें वह अपने दोस्त, बहन और माता-पिता के साथ हैं।

आइए जानते हैं कैसा रहा सुनील जंग का बचपन

राइफलमैन सुनील जंग महत का परिवार लखनऊ के कैंट स्थित तोपखाना बाजार में रहता है। उनका पैतृक गांव हिमाचल प्रदेश में है। उनका जन्म 13 नवंबर 1978 को हुआ था। उनके पिता नर नारायण जंग महत सेना से सूबेदार के पद से रिटायर हुए थे और मां का नाम बीना महत है। सुनील जंग की दो छोटी बहनें हैं – सोनी और श्रीजना।

उनके दादा मेजर नकुल जंग महत 1962 के भारत-चीन युद्ध में लड़े थे और उनके पिता 1971 के भारत-पाक युद्ध के सैनिक रहे। बचपन से ही सुनील का झुकाव सेना की ओर था। वे भी अपने दादा और पिता की तरह देश की सेवा करना चाहते थे। स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने सेना में भर्ती होकर अपने सपने को सच कर दिखाया। बचपन से ही सुनील जंग की खेलों में गहरी रुचि थी। यही जोश और अनुशासन उन्होंने सेना में भर्ती होने के बाद भी कायम रखा।

शहीद सुनील जंग की बहन सोनी कहती हैं, "भईया को खेलकूद का काफी शौक था। उन्हें गिटार बजाना भी आता था।"

शहीद सुनील जंग की बहन सोनी कहती हैं, “भईया को खेलकूद का काफी शौक था। उन्हें गिटार बजाना भी आता था।”

एक्टर सलमान खान के फैन थे सुनील जंग

शहीद सुनील जंग की बहन ने बताया, “भइया एक्टर सलमान खान के बहुत बड़े फैन थे। उन्हें सलमान की तरह बॉडी बनानी थी। उनके गाने सुनना और फिल्में देखना उन्हें बहुत अच्छा लगता था। भईया को खेलकूद और फोटो खिंचवाने का भी बहुत शौक था। हमेशा हंसते-मुस्कुराते रहते थे और अपने से बड़ों को बहुत सम्मान देते थे। उन्हें गिटार बजाना और गाना गाना भी बेहद पसंद था।”

बहन बीना महत बताती हैं, “शहादत के बाद सरकार की ओर से परिवार को एक गैस एजेंसी और लखनऊ के आलमबाग में 1500 वर्गफुट जमीन दी गई है। इसके अलावा, भईया के नाम पर आज तक न कोई सड़क बनी और न ही कोई पार्क।



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