Mumbai train blast, Jaunpur’s Ehtesham said- Salute to my wife | मुंबई ट्रेन ब्लास्ट, जौनपुर के एहतेशाम बोले- पत्नी को सैल्यूट: 19 साल इंतजार किया; जेल में रहते 23 डिग्रियां हासिल की; बरी होकर घर लौटे – Jaunpur News
अंकित श्रीवास्तव | जौनपुर17 मिनट पहले
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एहतेशाम सिद्दीकी… मुंबई लोकल ट्रेन ब्लास्ट में फांसी की सजा से बरी होने वाले पहले शख्स। जब जेल गए, तब 24 साल के थे। शादी को सिर्फ 6 महीने हुए थे। 19 साल जेल में बिताने के बाद 43 साल की उम्र में जौनपुर जिले के खेतासराय के अपने गांव मनेच्छा पहुंच गए हैं।
21 जुलाई को नागपुर जेल से रिहा होते ही फ्लाइट से मुंबई पहुंचे। वहां एक दिन रुके और 23 को फ्लाइट से वाराणसी एयरपोर्ट पहुंचे। वहां उन्हें रिसीव करने उनकी मां पहुंची थीं। पिता बीमार हैं, इसलिए नहीं जा पाए। उनकी रिहाई पर पूरे गांव में जश्न मचा। मिठाई बांटी गई। एहतेशाम के घर पहुंचने पर उन्हें देखने लोग आ रहे हैं। उनकी पत्नी की खुशी के आंसू नहीं रुक रहे। उन्हें अब नए सिरे से अपनी जिंदगी शुरू करनी है।
दैनिक भास्कर की टीम उनके गांव पहुंची और एहतेशाम से बात की। इतने दिन जेल में वह कैसे रहे, केस में उनका नाम कैसे आया, वापस लौटने पर घर कितना बदला मिला? इन सवालों के जवाब जानें। पढ़िए रिपोर्ट…

पिता ने बेटे को मिठाई खिलाकर स्वागत किया।
शादी के 6 महीने बाद ही जेल एहतेशाम ने बताया कि मैंने जौनपुर में 1996 में हाईस्कूल और 1998 में इंटर की परीक्षा पास की। इसके बाद हायर एजुकेशन के लिए 1998 में मुंबई चला गया। वहां मुंबई के एक कॉलेज में केमिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए एडमिशन ले लिया।
2001 में मेरा पढ़ाई का 5वां सेमेस्टर चल रहा था। मुम्बई के कुर्ला में सिमी (स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया) द्वारा चलाई जा रही लाइब्रेरी में मैं पढ़ाई करता था। यह लाइब्रेरी संगठन द्वारा चलाई जा रही है, इस बात का मुझे पता नहीं था। मैं लाइब्रेरी में बैठकर पढ़ाई कर रहा था तभी पहली बार मुझे गिरफ्तार किया गया। गिरफ्तारी के दूसरे दिन ही कोर्ट ने इस मामले में बेल दे दी और केस चलता रहा। पुलिस ने इसी गिरफ्तारी को आधार बना कर 2006 में ब्लास्ट कांड में मुझे आरोपी बनाया था।
परिवार के लोगों ने शुरू से मेरा साथ दिया। मैंने सबसे पहले अपने परिवार को सब सच-सच बताया। मेरे लिए सबसे जरूरी था, उनका मेरे ऊपर भरोसा। इसके बाद मेरे माता-पिता, भाई-बहन और पत्नी ने शुरू से मेरा साथ दिया। कभी भी किसी ने इस बात पर भरोसा नहीं किया कि मैं ऐसा कुछ कर सकता हूं। इन लोगों के भरोसे के कारण मुझे ताकत मिलती थी।

एहतेशाम के घर पहुंचने पर जश्न का माहौल है।
बोले- पत्नी ने कभी साथ नहीं छोड़ा अपनी पत्नी सबीना को सैल्यूट करूंगा। मैं जब जेल गया, उससे 6 महीने पहले ही मेरी शादी हुई थी। मैं उन्हें यहीं मां-पिता के पास छोड़कर गया था। अचानक इस तरह से मुझे जेल जाना पड़ा। इसके बाद वह लगातार कभी घर कभी मायके में रहीं और मेरा साथ दिया। मेरा हाल-चाल लिया और आज भी मेरे साथ हैं।
वह चाहती तो घर छोड़कर नई जिंदगी शुरू कर सकती थी, लेकिन उन्होंने हमेशा मुझ पर भरोसा जताया। जब जेल में मुझसे मिलने आती थीं तो कहती थीं कि कितनी भी दिक्कत आए जब आपने कुछ नहीं किया है तो आप जरूर रिहा होंगे। आज उनके भरोसे की भी जीत हुई है। अब मैं कुछ काम करके आगे की जिंदगी के बारे में सोचूंगा।
भतीजे-भतीजी से पहली बार मिला जब जेल गया, उस समय गांव में मां-पिता और दोनों छोटे भाई, एक छोटी बहन और पत्नी ही थे। बड़ी बहन की शादी मुझसे पहले हो गई थी। अब जब लौटा हूं तो पिता जी को पैर की तकलीफ हो गई है, इसी वजह से वो मुझे लेने नहीं पहुंच पाए, पर मेरे पहुंचने पर बहुत खुश हुए हैं।
मेरे दोनों छोटे भाइयों रुस्तम और मुस्तकीम की शादी हो गई है। उन दोनों ने मुंबई में ब्लेड मशीन का काम शुरू कर दिया है। वह मुझसे मिलने के लिए आते रहते थे। उनके दोनों के परिवार से अब मिल रहा हूं। मेरा एक भतीजा 11 साल का और भतीजी 5 साल के हो गए, जिनसे मैं अब मिल रहा हूं। अब मेरी छोटी बहन की ही शादी होने को बची है। सब कुछ सही रहा तो उसका निकाह अपने सामने धूमधाम से कराउंगा।

एहतेशाम ने दैनिक भास्कर से बातचीत में अपनी आपबीती सुनाई।
त्योहार होने पर बहुत बुरा लगता था एहतेशाम ने बताया कि जब कोई त्योहार पड़ता था या परिवार के लोग मिलने आते थे, तो मुझे भी लगता था कि काश मैं बाहर होता। मेरे भाइयों की शादी हुई, तो मुझे वहीं पर पता चला। ये सब पल अब दोबारा नहीं लौटेंगे, लेकिन कोई बात नहीं, कई बार जीवन में परेशानियां आती हैं।
मुझे इस बात की खुशी है कि मैं निर्दोष साबित हुआ हूं। जेल में बंद होने से पूरी दुनिया ही सीमित हो गई थी। पता ही नहीं चलता था बाहर का माहौल कैसा होगा। अब जब बाहर आया हूं तो चीजें बहुत ज्यादा बदल गई हैं, इन्हें समझने में अभी बहुत समय लग जाएगा।
मुंबई में हायर एजुकेशन के लिए गया था। वहां मेरे बीटेक के लास्ट इयर के दौरान मैं एक लाइब्रेरी में पढ़ने गया था। मुझे नहीं पता था इसका संचालन कौन कर रहा है। वहां अचानक पुलिस आई और मुझे गिरफ्तार कर लिया, हालांकि अगले ही दिन मुझे रिहा कर दिया गया।
यही गिरफ्तारी बाद में ट्रेन ब्लास्ट मामले में मेरी गिरफ्तारी का कारण बन गई। हालांकि इस केस में 2014 में मैं बरी हो गया था। कोर्ट ने कहा कि ये पढ़ने वाले बच्चे हैं। इनको नहीं पता था प्रतिबंध के बारे में। कम से कम 24 घंटे का समय लाइब्रेरी खाली करने के लिए दिया जाना चाहिए था।

एहतेशाम ने बताया कि 19 साल में इस तरह से जिंदगी में बदलाव आए।
बोले- मुझे न्यायपालिका पर पूरा भरोसा ट्रायल के दौरान मुझे काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। केस शुरू होने के बाद भी यह समस्या थी कि केस का नंबर ही नहीं आ रहा था। काफी दिनों के बाद मेरा नंबर कोर्ट में आया था। इसके लिए मैंने दुआ भी की थी। मुझे न्यायपालिका पर पूरा भरोसा है। सरकार सुप्रीम कोर्ट जा रही है, हम भी अपनी तैयारी किए हुए हैं। हम निर्दोष हैं, ऐसे में मुझे न्याय जरूर मिलेगा।
जेल में रहते बदला अधिकारियों का रवैया किसी के लिए भी सबसे बड़ी दिक्कत तो आजादी छिन जाना ही होता है। जेल में शुरुआत में मुझे काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। अधिकारियों का व्यवहार मेरे लिए अच्छा नहीं था। कुछ ज्यादती भी हुईं, जैसे कम लोगों से मिलने देना, लेकिन जैसे-जैसे समय बीता लोग मुझसे पूरी तरह परिचित हुए तो लोगों के व्यवहार में भी बदलाव आ गया।
उन लोगों ने जाना कि मेरा व्यवहार सही है। कुछ समय बाद मुझे जेल में कोई दिक्कत नहीं हुई। इस दौरान मेरी इंजीनियरिंग की पढ़ाई जरूर बाधित हुई। मुझे पढ़ाई के लिए उस समय छूट नहीं मिली।

एहतेशाम ने जेल में रहते हुए किताब लिखी है।
ओपन यूनिवर्सिटी से 23 डिग्री-डिप्लोमा हासिल किए कुछ समय बाद अधिकारियों द्वारा मुझे पढ़ाई के लिए लाइब्रेरी भी उपलब्ध कराई गई और मुझे मुंबई से नागपुर जेल भेज दिया गया था। सबसे पहले मैंने कुरान याद की। इसके बाद इन 19 साल में मैंने कुल 7 डिग्रियां, 13 सर्टिफिकेट और 3 डिप्लोमा लिए हैं।
जेल में रहते हुए कैदियों के जीवन पर लिखी किताब इन डिग्रियों में बीए सोशलॉजी, एमए सोशलॉजी, इंग्लिश से एमए, पॉलिटिकल साइंस से एमए, एमबीए एचआर, बैचलर इन टूरिज्म स्टडीज और एलएलबी अभी जारी है। मैंने जेल में रहते हुए बिजनेस लॉ, साइबर लॉ, डिजास्टर मैनेजमेंट, गाइडेंस, ह्यूमन राइट्स, उर्दू लैंग्वेंज, अरबी लैंग्वेज, टीचिंग इंग्लिश, मार्केटिंग, फाइनेंशियल मैनेजमेंट और तमाम विषयों पर डिप्लोमा और सर्टिफिकेट लिए हैं। जेल में रहते हुए ही मैंने हॉरर सागा नाम की बुक की है। इसमें जेल में लोगों के साथ होने वाले व्यवहार का जिक्र किया गया है।
एलएलबी पूरा करके शुरू करेंगे जीवन मैं अभी एलएलबी की पढ़ाई कर रहा हूं। इसे पूरा करने के बाद आगे के जीवन के बारे में सोचना शुरू करूंगा। पहले तो कुछ दिन अपने परिवार के साथ रहकर सबकुछ जानना है कि इन 19 सालों में क्या-क्या हुआ। टेक्निकली बहुत चीजें बदली हैं, वो सब सीखनी हैं। अपने भतीजे-भतीजी से बहुत बातें करनी हैं। मेरे पिता जी बीमार हैं, उनकी देखभाल करूंगा। मेरे आने से वह बहुत खुश हैं। आते ही उन्होंने मुझे मिठाई खिलाई।
पिता ने मिठाई खिलाकर जताई खुशी वहीं, बेटे के पहुंचने से बेहद खुश नजर आ रहे पिता कुतुबुद्दीन ने बताया कि हमने भगवान से प्रार्थना की थी। मेरा बेटा बेकसूर था, आज सच की जीत हुई है। मुझे न्यायपालिका पर पूरा भरोसा था। आज बहुत खुश हूं कि मेरा बेटा 19 साल बाद मेरे पास आया है।

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