Medicine can be made from the algae of Jhansi’s ponds | झांसी के तालाबों की काई से बन सकेगी दवाई: बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय के शोध में मिले कई तत्व, मवेशियों के लिए उपयोगी बनेगा लक्ष्मी और आंतिया ताल – Jhansi News
लक्ष्मीताल की ड्रोन से ली गई फोटो
झांसी महानगर के ऐतिहासिक आतिया ताल और लक्ष्मीताल में कुदरत का खजाना छिपा है। इन तालाब में जमा काई से वैकल्पिक ईंधन, दवाएं और मवेशियों के लिए चारा बन सकेगा। साथ ही गंदे पानी की गुणवत्ता में भी सुधार होगा। इसको लेकर लंबे समय से शोध किया जा रहा था।
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बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों छात्रों ने इसे लेकर शोध किया है। 26 मार्च 2024 को स्पेन के बार्सिलोना में आयोजित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में इस शोध को प्रस्तुत किया गया। सम्मेलन में विश्वभर से आए वैज्ञानिकों ने विवि के शोध पर मुहर लगा दी है।
तेजी से घट रहे जलस्तर को बचाने में जितने नदी, तालाब और पोखर उपयोगी हैं, उतना ही इनमें उगने वाले शैवाल भी महत्वपूर्ण हैं। यह तथ्य विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान विभाग के वैज्ञानिक और असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. एके गिरि ने पांच साल के शोध के बाद सिद्ध कर दिया है। साल 2019 से महानगर के आंतियाताल और लक्ष्मीताल के शैवाल पर शोध के बाद उन्होंने पाया कि इसमें 70 प्रतिशत तक लिक्विड कंटेंट है। जिसमें बायोमास, प्रोटीन और दूसरे केमिकल भी शामिल हैं। इसके अलावा इन तालाब में पांच प्रजाति के शैवाल हैं। यदि इन्हें उचित प्रक्रिया कर अलग किया जाता है तो इनसे सौंदर्य को निखारने वालीं दवाएं, वैकल्पिक ईंधन और मवेशियों के लिए चारा बनाया जा सकता है। विश्वविद्यालय के इस शोध को स्पेन के बार्सेलोना में 25 और 26 मार्च को तेल, गैस, पेट्रोलियम विज्ञान व इंजीनियरिंग पर आधारित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में प्रस्तुत किया गया। इसके बाद यहां आए विश्वभर के वैज्ञानिकों ने विवि के शोध पर मुहर लगा दी।
यह है शैवाल और जलीय पौधों की उपयोगिता
डॉ. एके गिरि ने बताया कि शोध में आंतियाताल और लक्ष्मीताल के साथ कुछ ऐसे धोबीघाट को भी शामिल किया गया था, जहां शैवाल और जलीय पौधे होते हैं। इनके साथ कई सूक्ष्म शैवाल भी मिले हैं, जो सीवेज के पानी को शोधित कर सकते हैं। जिससे पानी की गुणवत्ता में सुधार होगा। इसके अलावा इनमें माइक्रोएल्गल बायोमास का भी उत्पादन पाया गया है। इनसे वैकल्पिक ईंधन, दवाएं और चारा भी बनाया जा सकता है। इस प्रयोग के बाद बुंदेलखंड विवि के वैज्ञानिकों में खुशी का आलम है। उनका कहना है कि जल्द ही शोध का पेटेंट कराएंगे। बता दें कि सम्मेलन में दिल्ली विश्वविद्यालय, जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय और बनारस हिंदू विवि के वैज्ञानिकों ने भी प्रतिभाग किया था।