Varanasi will celebrate the 145th birth anniversary of Munshi Prem Chand today | वाराणसी आज मनाएगा मुंशी प्रेमचंद की 145वीं जयंती: बड़ी घोषणाओं के बावजूद मुंशी का घर बदहाल, शोध केंद्र पर ताला-सन्नाटा – Varanasi News


हिंदी कथा साहित्य के सम्राट मुंशी प्रेमचंद की 145वीं जयंती आज है। हिंदी के महान उपन्यासकार के वाराणसी लमही स्थित पैतृक आवास पर पारंपरिक आयोजन होंगे। जयंती की पूर्व संध्या पर ‘बूढ़ी काकी’ कहानी का मंचन हुआ। वरिष्ठ रंगकर्मी राजलक्ष्मी मिश्रा ने भावपूर्

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सेतु सांस्कृतिक केंद्र की ओर से आयोजन में रंगकर्मी राजलक्ष्मी मिश्रा की प्रस्तुति देखकर दर्शकों की आंखें नम हो गई। इस कहानी में एक वृद्ध महिला की जीवनी है जिसे उसके परिवार के सदस्य उपेक्षित करते हैं। आज भी कई मंचन होंगे जिसमें गोदान और ईदगाह की कहानी प्रमुख है।

उधर, कई रचनाएं लिखकर परिवर्तन लाने वाले मुंशी जी की जन्मस्थल अपने कायाकल्प का इंतजार कर रही है। उपन्यास सम्राट के मकान की जयंती और उनकी वर्तमान स्थित को लेकर काशी के हिंदी साहित्य प्रेमी चिंतित हैं। उनकी माने तो जिस गांव लमही के किरदारों पर लिखीं कहानियां गोदान, कफन, ईदगाह, दो बैलों की जोड़ी यहां अब भी दिखती है।

इस गांव के आस-पास बुनी मैकू हो या हामिद और उसकी दादी के किरदार किताबें पढ़ते ही जीवंत हो जाते हैं लेकिन इसी गांव में निर्जीव हो गई हैं। कहानीकार मुंशी प्रेमचंद ने जिन चहारदीवारी में रचनाएं लिखी अब उन दीवारों में जर्जरता आ गई है। घर वीरान पड़ा है और उसे सहेजने और संजोने के दावे हवाई हो गए।

मुंशी प्रेमचंद स्मारक स्थल।

मुंशी प्रेमचंद स्मारक स्थल।

आज मुंशी प्रेमचंद की 145वीं जयंती हैं। पहले आपको बताते हैं लमही का हाल…

प्रेमचंद जहां लिखते थे कहानी, वो जगह अब बदहाल

दुनिया को गांव, गरीबी और जन आंदोलनों की कहानी से रुबरू कराने वाले मुंशी प्रेमचंद की कर्मस्थली 2 दशक से अपने दिन बहुरने का इंतजार कर रही है। प्रेमचंद ने अपने इस कमरे से कई रचनाओं को लिखा, अब ये कमरे बदहाल हैं। भवन की दीवारें चटक गई हैं। स्मारक का हाल बद से भी बदतर है।

लाइब्रेरी के ठीक बगल में प्रेमचंद का वह बैठका भी है, जिसके हर कोने में उनकी यादें दीमक चाट रही हैं। इसी बैठक के सबसे ऊपर के कमरे में प्रेमचंद लिखने-पढ़ने का काम करते थे। सबसे नीचे वाले हिस्से में किचन था। मेहमानों के ठहरने का इंतजाम किया गया था। तीन मंजिला के इस मकान के बीच में आंगन है। आंगन से होते हुए सीढ़ी पहली और दूसरी मंजिल तक ले जाती है।

मकान में सबसे ऊपर दो कमरे बने हैं, जिसमें बैठकर मुंशीजी ने कई कालजयी रचनाएं लिखीं। बैठका के पश्चिम में बना कुआं तो है, लेकिन उस में पानी नहीं है। लोहे की बाड़ से उसे ढक दिया गया है। बनारस के साहित्यकारों के हस्तक्षेप के बाद उनके आवास को स्मारक के रूप में सहेजा गया। लेकिन दो छोटे-छोटे कमरों के अलावा अब यहां कुछ भी नहीं है। यहां न तो पर्यटकों की आवाजाही है और न ही साहित्यकारों की।

मुंशी प्रेमचंद शोध एवं अध्ययन केंद्र

मुंशी प्रेमचंद शोध एवं अध्ययन केंद्र

करोड़ों की कीमत से बना अध्ययन केंद्र बंद

2.80 करोड़ से बना मुंशी प्रेमचंद शोध एवं अध्ययन केंद्र पर ताला ही रहता है। वजह बताई गई कि अभी तक सरकार की ओर से शैक्षणिक कार्यों से जुड़ी कोई नियुक्ति नहीं हुई। 2005 में यूपी सरकार ने केंद्र सरकार को जमीन मुहैया कराई। इसके बाद मानव संसाधन मंत्रालय ने कमेटी बनाकर BHU के हिंदी विभाग को निर्माण करवाने की जिम्मेदारी दी। निर्माण के बाद 8 साल तक भवन उद्घाटन के लिए तरसता रहा।

2016 में केंद्रीय मंत्री महेंद्रनाथ पांडेय ने उद्घाटन किया। इसके बाद भी कोई कार्य नहीं हुआ। प्रगतिशील लेखक संघ के प्रांतीय महासचिव डॉ. संजय श्रीवास्तव ने कहा- तमाम प्रयास के बाद इस शोध केंद्र को खोला गया। मगर, केंद्र सरकार से इसके लिए निदेशक, शोध विशेषज्ञों और कर्मचारियों की नियुक्ति नहीं हुई। इसके चलते शिक्षण कार्य शुरू नहीं हुआ।

लाइब्रेरियन की नियुक्ति के लिए विश्वविद्यालय के कुलपति को प्रपोजल दिया गया था। मगर, इस दिशा में कोई काम नहीं हुआ। BHU हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. वशिष्ठ अनूप ने बताया- अभी तक शोध केंद्र के संबंध में कोई बातचीत नहीं हुई है। सरकार के स्तर से भी नियुक्ति की कोई प्रक्रिया शुरू नहीं की गई है।

मुंशी प्रेमचंद की रचनाएं ।

मुंशी प्रेमचंद की रचनाएं ।

विरासत की हिफाजत नहीं हो रही

मुंशी प्रेमचंद के प्रपौत्र दुर्गा प्रसाद श्रीवास्तव ने कहा- हर साल जयंती समारोह पर घोषणाएं तो होती हैं, मगर हुआ कुछ नहीं। साल 2005 में लमही में मुंशी प्रेमचंद की स्मृति में राष्ट्रीय स्मारक बनाने की घोषणा हुई। म्यूजियम और पुस्तकालय बनाने का वादा किया गया।

कुछ साल पहले शासन ने 7 करोड़ रुपए रिलीज भी किए, लेकिन नौकरशाही ने प्रेमचंद स्मारक को विवादित बताते हुए समूचा धन लौटा दिया। जबकि कोई विवाद है ही नहीं, क्योंकि इनके बैठका और स्मारक को कई साल पहले बनारस की साहित्यिक संस्था नागरी प्रचारणी सभा को दान में दे दिया गया था।

लोगों में दिखता उपेक्षा का दंश

लमही के डॉ. दुर्गा प्रसाद श्रीवास्तव ने बताया कि हमारी भाषा के महान साहित्यकार प्रेमचंद की कर्म स्थली बनारस है। हमारे लिए गौरव का विषय है कि उनकी जन्मस्थली लमही स्थित मुंशी प्रेमचंद शोध एवं अध्ययन केंद्र है लेकिन प्रेमचंद शासन और प्रशासन को साल में एक दिन याद आते हैं। इसके बाद मुंशी जी को सभी भूल जाते हैं।

आज भी 31 जुलाई को बड़े-बड़े अफसर और बड़े-बड़े लोग आएंगे। इसके बाद कोई झांकने नहीं आता है। मुंशी प्रेमचंद राष्ट्रीय स्मारक की जमीन पर दबंगों ने अवैध निर्माण करा लिए हैं। वर्ष 2012 के पहले तक मुंशी प्रेमचंद की जयंती पर 3 दिवसीय लमही महोत्सव होता था और अब 1 दिन की रस्म निभाई जाती है।



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