Yamuna-Chambal and Betwa caused havoc | यमुना-चंबल और बेतवा ने मचाई तबाही: औरैया, जालौन के गांवों में चल रही नाव, ट्रैक्टर-ट्रॉली पर गृहस्थी; हमीरपुर शहर भी बाढ़ में घिरा – Auraiya News
हिमांशु गुप्ता | औरैया1 मिनट पहले
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यूपी में नदियां उफान पर हैं। 5 जिले के 224 गांवों पर बाढ़ का खतरा मंडरा रहा है। बाढ़ की चपेट में करीब डेढ़ लाख आबादी है। जालौन के 120 गांवों की 80 हजार और औरैया के 12 गांवों की 30 हजार आबादी प्रभावित हैं। औरैया में यमुना और चंबल नदी ने तबाही मचा दी है। गांव टापू बन गए हैं। लोग घर छोड़ने को मजबूर हैं। सड़कों पर नाव चल रही है। औरैया, जालौन, हमीरपुर, ललितपुर और इटावा के लोग बाढ़ में फंसे हैं। घर की छतों पर रात बिता रहे।
ऐसे ही हालत जालौन और हमीरपुर जिले के भी हैं। हमीरपुर शहर के चारों ओर से यमुना के पानी से घिर गया है। यमुना का जलस्तर तेजी से बढ़ रहा है। इसका असर दिख रहा है। पढ़िए पांच जिलों में बाढ़ के क्या हालात हैं? गांव खाली हो रहे हैं, राहत शिविरों में लोग शरण लिए हुए हैं…

यमुना और चंबल नदी के उफान से औरैया में सड़क पर नाव चलती हुई।
- औरैया का हाल
यमुना और चंबल उफान पर, गांवों में चल रही नाव औरैया के कोटा बैराज से 3 लाख क्यूसिक पानी छोड़ा गया है। इसकी वजह से यमुना और चंबल उफान पर हैं। अस्ता और नोरी गांव में 5 फीट तक पानी भरा है। यमुना खतरे के निशान 112 मीटर के ऊपर बह रही हैं। नदी का जलस्तर हर घंटे 8 से 9 सेमी बढ़ रहा है। दैनिक भास्कर डिजिटल टीम जिला मुख्यालय से 25 किमी दूर सदर तहसील के अस्ता गांव पहुंची।
यहां सड़कों पर 5 से 10 फीट पानी भरा था। घरों में पानी भरने से लोग छतों पर तिरपाल डालकर रहने को मजबूर हैं। बिजली के खंभे आधे डूब गए हैं। जहां कभी बाइक और ट्रैक्टर चलते थे, वहां अब डोंगी (नाव) से आवाजाही हो रही है।
यहां के मंगल सिंह ने बताया- हर साल बाढ़ आती है। हम छतों पर रहते हैं या गांव छोड़ देते हैं। प्रशासन बस लंच पैकेट भेजकर चला जाता है। कोई स्थायी समाधान नहीं है। अस्ता गांव की कहानी साल दर साल वही है। बाढ़ आती है, गांव डूबता है, लोग पलायन करते हैं। फिर वापस लौटकर गृहस्थी दोबारा बसाते हैं।
1996 में पहली बार बाढ़ आई थी। फिर 2019 से हर साल ये सिलसिला जारी है। 2022 में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दौरा किया था। गांव को ऊंचाई पर बसाने का निर्देश दिया था। लेकिन हकीकत यह है कि ग्रामीणों की जमीन तो ले ली गई, बदले में जमीन नहीं मिली। फॉरेस्ट की जमीन से एक्सचेंज प्रक्रिया अधूरी है।
बाढ़ का पानी अपने साथ चंबल सेंचुरी से मगरमच्छ भी लेकर आता है। फरिहा गांव में तो मगरमच्छ घुस आया। ग्रामीणों में दहशत का माहौल है। लोग दिन-रात छतों पर ही रहने को मजबूर हैं। चंबल सेंचुरी की टीम मगरमच्छ को पकड़ने में जुटी हुई है।

बाढ़ से प्रभावित अस्ता गांव के लोग ऊंचाई वाले स्थानों पर रहने की व्यवस्था कर रहे हैं।
जब जमीन ही नहीं है तो ऊंचाई पर कहां बसेंगे इसी गांव के अरविंद निषाद ने बताया कि हमारी जमीन सरकार ने ले ली। लेकिन अब तक ऊंची जगह पर बसने के लिए जमीन नहीं मिली। हम हर बार सब कुछ खोते हैं। जब भी बाढ़ आती है। कुछ ने कुछ हमारा लेकर जाती है। न उपजाऊ जमीन बचती है, न तो आशियाना। सब पानी में बह जाता है।
अब तो आलम यह है कि रोजी रोटी को भी नहीं जा पाते। जहां तक निगाह जाती है बस पानी ही पानी दिखता है। बच्चे स्कूल नहीं जा पाते। हर साल दो महीने उनकी पढ़ाई बरबाद होती है। प्रशासन को इस पर कुछ सोचना चाहिए।

यमुना नदी के उफान पर होने से अस्ता गांव में पानी भर गया है, अब अपना घर छोड़ने लगे हैं।
अब तो छत ही सहारा है अस्ता गांव से निकलकर भास्कर टीम यहां से 10 किलोमीटर दूर नोरी गांव पहुंची। यहां सबसे पहले हमारी मुलाकात गुड्डी देवी से हुई। उन्होंने बताया कि नदी का पानी घर के नीचे तक चढ़ आया है। सब कुछ छत पर उठा कर रख लिया। बारिश हो जाए तो पन्नी लगाकर घर बचाते हैं। खाना बनाने में भी दिक्कत होती है।
घर के बाहर निकलना मुश्किल है। हर साल बस यही उम्मीद होती है कि सरकार इस साल कुछ न कुछ हमारे लिए करेगी। लेकिन हम हर साल निराश होते हैं। यही हालात रहे तो खाने के लाले पड़ जाएंगे। थोड़े दिन में राशन खत्म हो जाएगा। फिर सरकार के सहारे। खाने के पैकेट मिलेंगे तभी भूख मिटेगी।
इसी गांव के नाविक अजब सिंह का कहना है कि प्रशासन हर साल मुझे डोंगी से गांव पहुंचाने का काम देता है। लेकिन कभी एक रुपया नहीं दिया गया। ऐसे में बच्चों का पेट पालना मुश्किल है। अब तो मुश्किल से परिवार चलता है। बाढ़ हमसे बहुत कुछ छीन लेती है। न खेती हो पाती है। न तो नांव चलाकर ठीक से पैसे मिलते हैं। लोग किसी तरह अपनी जान बचाने में लगे हैं। औरैया के 12 गांवों के करीब 30 हजार लोग बाढ़ से प्रभावित हैं।
- जालौन का हाल

जालौन में सिंध और बेतवा नदी का पानी गांवों में भरने से लोग घर छोड़कर जा रहे हैं।
घरों में 5 से 8 फीट पानी भरा जालौन में भी बाढ़ से हालात बिगड़ गए हैं। यमुना, पहूज, सिंध और बेतवा नदियां उफान पर हैं। नदियों का जलस्तर एक साथ बढ़ने से 50 से अधिक गांव बाढ़ की चपेट में हैं। माधौगढ़ तहसील के कई गांव टापू में तब्दील हो गए हैं। डिकौली, निनावली, मुहब्बतपुरा और किशनपुरा गांव का सबसे बुरा हाल है।
यहां पर भास्कर टीम सबसे पहले निवावली गांव पहुंची। यहां के ग्रामीण गजराज सिंह ने कहा- गांव में 8 फीट तक पानी भरा है। 40 से ज्यादा घर जलमग्न हैं। गांव में आने-जाने का कोई साधन नहीं बचा है। लोग घरों की छतों और ऊंची जगहों पर शरण लिए हुए हैं।
कालपी में यमुना नदी खतरे के निशान से 3.80 मीटर ऊपर बह रही है। 2021 के बाद पहली बार इतनी भयावह बाढ़ देखने को मिली है। अभी तक न तो राशन मिला, न पीने का पानी। पिछले 3 दिनों से लोग बिना भोजन और रोशनी के अंधेरे में गुजर-बसर कर रहे हैं।
गजराज सिंह ने बताया कि हम यहां कई दिनों से फंसे हैं। प्रशासन का कोई अफसर दो घंटे के लिए आता है, फोटो लेता है और चला जाता है। जमीन से लेकर छत तक, हर चीज डूबी है। बाढ़ ने सिर्फ घरों को नहीं, खेतों और स्कूलों को भी तबाह कर दिया है। खेतों में खड़ी धान, उड़द, मक्का और बाजरे की फसलें जलमग्न हो गई हैं। गांवों में स्कूल बंद कर दिए गए हैं। बच्चों की पढ़ाई रुक गई है।

पहूज और सिंध नदी के उफान पर होने की वजह से माधौगढ़ तहसील के कई गांव डूब गए हैं।
हर घंटे बिगड़ रहे हालात निनावली के प्रधान विकास सिंह ने कहा- हर घंटे हालात बिगड़ते जा रहे हैं। प्रशासन को तत्काल राहत अभियान चलाना चाहिए। वरना स्थिति और भी खतरनाक हो जाएगी। खेतों में खड़ी फसलें पूरी तरह से बर्बाद हो गई हैं। बीमारी भी बढ़ रही है। लेकिन स्वास्थ्य विभाग की ओर से न तो कोई कैंप लगाया गया, और न दवा वितरण शुरू हुआ है। कई लोग बीमार हैं।
ग्रामीण खुशबू ने बताया कि सड़कों तक पानी आ गया है। मगरमच्छ का डर है, रात को बाहर निकलना मुश्किल हो गया है। महिलाएं और बच्चे डरे हुए हैं। बाढ़ प्रभावित इलाकों में प्रशासन ने नावें तैनात की हैं। लेकिन हर गांव तक नावें नहीं पहुंच पाई हैं।
- हमीरपुर का हाल
ट्रैक्टर, ठेलों पर गृहस्थी लादकर भाग रहे लोग हमीरपुर में यमुना और बेतवा उफान पर हैं। तटीय इलाकों में रातभर ट्रैक्टर, ई-रिक्शा और ठेलों पर गृहस्थी लादे लोग ऊंचे स्थानों की ओर जाते नजर आए। सैकड़ों ग्रामीणों ने खुले आसमान के नीचे रात गुजारी। कई लोग अब भी अपने डूबते घरों को बचाने की जद्दोजहद में लगे हैं। माताटीला डैम से 3.64 लाख क्यूसेक और लहचूरा से 18 हजार क्यूसेक पानी छोड़ा गया है। जिससे हालात और भी खराब हो गए हैं।
जिले में शुक्रवार सुबह यमुना का जलस्तर 106.690 मीटर और बेतवा का 106.260 मीटर तक पहुंच गया। यमुना का जलस्तर 12 सेमी प्रति घंटा और बेतवा 13 सेमी/घंटा की रफ्तार से बढ़ रहा है।

घरों में पानी भरने से लोग ट्रैक्टर में गृहस्थी का सामान लादकर सुरक्षित स्थानों पर जा रहे हैं।
सड़कें कटने से गांवों का संपर्क टूटा
यमुना का पानी कुछेछा-पत्योरा मार्ग पर बह रही है। सड़क जलमग्न होकर कट चुकी है। केसरिया डेरा, भोला का डेरा, मेरापुर, सूरजपुर जैसे गांवों में लोग छतों और ऊंचे टीलों पर शरण लिए बैठे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि पिछले 10 वर्षों में ऐसी बाढ़ नहीं देखी। यह तबाही सबकुछ बहा ले जा रही है। रास्ते, घर, खेत और उम्मीदें।
राहत शिविरों में 550 लोग, इंतजाम अधूरे
डीएम विजय शंकर पांडेय ने बताया कि कुछेछा डिग्री कॉलेज और महर्षि विद्या मंदिर को राहत शिविर बनाया गया है। जहां 550 लोगों को शिफ्ट किया गया है।
मेडिकल कैंप, पशुओं के लिए चारा, भोजन पैकेट और PAC की फ्लड टीम तैनात कर दी गई है। लेकिन मौके पर पहुंचे लोगों ने बताया कि अभी भी कई गांवों तक प्रशासन की नावें नहीं पहुंचीं हैं।

हमीरपुर में यमुना और बेतवा उफान पर होने से मुख्य सड़कों तक पानी आ चुका है।
प्रशासन ने प्रभावित क्षेत्रों को तीन जोन में बांटा है।
रेड जोन- केसरिया डेरा, भोला का डेरा, ब्रह्मा डेरा, जरैली मड़इया समेत 13 गांव शामिल है।
येलो जोन- रिठौरा, जमरेही, बदनपुर समेत 12 गांव शामिल है।
ग्रीन जोन- मनकी कला, बरुआ, जलाला, मोराकांदर, चंद्रवारी समेत 60 गांव को शामिल किया गया है।
रेड जोन में कई घरों में पानी घुस गया है। ग्रामीणों को सुरक्षित निकालना प्रशासन के लिए सबसे बड़ी चुनौती बना हुआ है।

हमीरपुर में यमुना और बेतवा नदी के उफान पर होने से तटीय इलाका पानी में डूबा।
ललितपुर: एमपी में बारिश, डैम से छोड़े पानी ने बिगाड़े हालात
ललितपुर में बेतवा नदी के उफान के चलते यूपी एमी बॉर्डर पर राजघाट गांव में नदी पर बना पुल तीन दिन पानी मे 15 फीट डूबा रहा। जिसके चलते बड़े वाहन राजघाट से मध्य प्रदेश के रास्ते अशोक नगर, शिवपुरी नहीं जा सके। माताटीला बांध से छोड़े गए पानी के चलते बेतवा नदी में उफान आई।
बाढ़ से निपटने की तैयारी पूरी
बाढ़ क्षेत्र में 21 चौकियां बनाई गई हैं। आश्रय स्थल के लिए 23 स्कूलों को चिह्नित किया गया है। यहां के गांवों में अभी तक पानी नहीं भरा है। जिस दिन ज्यादा बारिश की संभावना होती है। उस दिन स्कूल की छुट्टी कर दी जाती है। अभी तक चार बार स्कूलों की छुट्टी की जा चुकी है ।
बसवां गांव में 29 जुलाई को 45 वर्षीय चरवाहा टापू पर फंस गया था। जिसे 36 घण्टे बाद एनडीआरएफ टीम ने रेस्क्यू किया। रणछोड धाम मंदिर के पास बेतवा नदी पर बने घाट व शंकर जी का मंदिर दो दिन तक पानी मे डूबा रहा।

माताटीला बांध से छोड़े गए पानी के चलते बेतवा नदी में उफान आई।
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