Who is Akhilesh Dubey of Kanpur…? | कैसे बना कानपुर के अखिलेश दुबे का सम्राज्य: पढ़िए पुलिस मुखबिर से माफिया बनने की कहानी, दरबार में माथा टेकते थे IPS-PPS – Kanpur News


कानपुर के अधिवक्ता अखिलेश दुबे की अरेस्टिंग के बाद से प्रदेश भर में उसका सिंडीकेट चर्चा में है। आखिर पुलिस का एक मुखबिर किस तरह से फर्जी FIR उद्योग चलाकर पुलिस की मदद से ब्लैकमेलिंग का खेल करके सैकड़ों करोड़ का साम्राज्य खड़ा करके माफिया बन गया।

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इतना ही नहीं उसके दरबार में दरोगा-इंस्पेक्टर से लेकर आईपीएस और पीपीएस अफसर माथा टेकने आते थे। उसके बड़े-बड़े सफेदपोश नेताओं से भी काफी नजदीकी है। प्रदेश के हर बड़े एनकाउंटर के बाद दुबे के पास पुलिस अफसर सलाह लेने और फर्द लिखवाने पहुंचते थे। साकेत नगर में उसके दफ्तर में दरबार सजता था। अफसरों से लेकर शहर के हर एक रसूखदार आदमी वहां पर दंडवत होता था।

कानपुर पुलिस कमिश्नर अखिल कानपुर ने अखिलेश दुबे को क्यों जेल भेजा…? किस तरह से एक आईपीएस अफसर ने दुबे के पूरे सिंडीकेट को बेनकाब कर दिया। पढ़िए दैनिक भास्कर की खास रिपोर्ट…।

अधिवक्ता अखिलेश दुबे को भाजपा नेता के साथ वसूली के आरोप में गुरुवार 7 अगस्त को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया गया था। इसके बाद से वह जेल में है।

अधिवक्ता अखिलेश दुबे को भाजपा नेता के साथ वसूली के आरोप में गुरुवार 7 अगस्त को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया गया था। इसके बाद से वह जेल में है।

फर्रुखाबाद निवासी अधिवक्ता मेरठ से भागा तो कानपुर बना ठिकाना

अधिवक्ता अखिलेश दुबे मूल रूप से फर्रुखाबाद के गुरुसहायगंज का रहने वाला है। उसके पिता सरकारी कर्मचारी थे और मेरठ में तैनात थे। वहां रहने के दौरान अखिलेश दुबे ने कई अपराध किए तो पुलिस पीछे पड़ गई। इसके बाद वह भागकर कानपुर आ गया।

बात करीब 1980 के दशक की है। अखिलेश दुबे किदवई नगर में किराए का कमरा लेकर रहने लगा और दीप सिनेमा के बाहर साइकिल स्टैंड संचालित करता था। इस दौरान मादक पदार्थ तस्कर मिश्री जायसवाल की मादक पदार्थ की पुड़िया बेचने लगा और धीरे-धीरे यहां पर भी आपराधिक गतिविधियों में लिप्त हो गया।

कानपुर के साकेतनगर स्थित अखिलेश दुबे का घर। आरोप है कि घर को भी कब्जे की जमीन पर बनाया गया था।

कानपुर के साकेतनगर स्थित अखिलेश दुबे का घर। आरोप है कि घर को भी कब्जे की जमीन पर बनाया गया था।

गैंगस्टर से शुरू हुई वर्चस्व को लेकर रंजिश

वर्चस्व को लेकर अखिलेश दुबे का कानपुर के चर्चित अपराधी व गैंगस्टर नीतू नाई और गोपी नाई से रंजिश शुरू हो गई। रंजिश इस हद तक बढ़ गई कि गैंगस्टर अखिलेश दुबे की हत्या करने की फिराक में घूमने लगे।

इधर किदवई नगर पुलिस ने अखिलेश के अपराध को देखते हुए उसे थाने के 10 नंबर रजिस्टर में उसका नाम दर्ज किया था, तब के जमाने में गुंडा एक्ट या अन्य निरोधात्मक कार्रवाई नहीं होती थी। अपराधियों का नाम 10 नंबर रजिस्टर में लिखा जाता था और इस रजिस्टर में दर्ज अपराधी को 10 नंबरी कहते थे।

नीतू नाई से रंजिश और हत्या के डर से अखिलेश दुबे किदवई नगर से भागकर राममोहन हाता के खलीफा गैंग की शरण में पहुंच गया। साथ ही एक कांग्रेसी नेता मिश्रा जी ने भी दुबे को शेल्टर दिया।

इधर दुबे मजबूत गैंग के शरण में आने के बाद कई पुलिस वालों के संपर्क में आ गया और अपराधियों की मुखबिरी करने लगा। इस दौरान शहर के चर्चित अपराधी और अपने दुश्मन गोपी नाई का पुलिस से साठगांठ व मुखबिरी करके करीब 1995 में एनकाउंटर करवा दिया।

इसके बाद से ही अखिलेश दुबे का उदय हुआ। नीतू नाई के एनकाउंटर के बाद दुबे का वर्चस्व बढ़ना शुरू हो गया। इसके बाद दुबे के संपर्क में कई बड़े अपराधी संपर्क में आ गए तो दूसरी तरफ अखिलेश दुबे भी पुलिस का मजबूत मुखबिर बन गया।

धीरे-धीरे कई थानेदार, दरोगा, इंस्पेक्टर संपर्क में आ गए। इसी बीच दुबे ने जुगाड़ से लॉ की डिग्री हासिल कर ली। इसके बाद पीएचडी भी करने का दावा करके अपना नाम डॉ. अखिलेश दुबे लिखने लगा।

अखिलेश दुबे का किशोरी वाटिका गेस्ट हाउस जो उनकी मां के नाम पर है, इसे भी कानपुर विकास प्राधिकरण की कब्जे की जमीन पर बनाया गया है।

अखिलेश दुबे का किशोरी वाटिका गेस्ट हाउस जो उनकी मां के नाम पर है, इसे भी कानपुर विकास प्राधिकरण की कब्जे की जमीन पर बनाया गया है।

2000 के दशक में दर्जनों एनकाउंटर करवाए

अपने दुश्मन गोपी नाई का एनकाउंटर करवाने के बाद दुबे ने अपनी जान बचाने के लिए अपराधी दुर्गा नाई का भी एनकाउंटर कराया। इसके बाद तो मानों पुलिस वाले अपराधियों का एनकाउंटर करने व पकड़ने के लिए दुबे से संपर्क करने लगे।

यह करीब 1995 से 2000 के बीच दुबे की पुलिस वालों ने नजदीकी बढ़ती चली गई और फिर एक के बाद एक संजय ओझा, रफीक, बिल्लू को दिल्ली से लाकर पुलिस ने एनकाउंटर में मारा, शमीम दुरंगा, दीपक धोबी समेत 15 से ज्यादा अपराधियों का एनकाउंटर में पुलिस से मरवा दिया।

इधर पुलिस वालों के साथ रहते-रहते दुबे ने पुलिस की फर्द लिखने की बेसिक जानकारी हासिल कर ली थी। इसके बाद वह फर्द लिखाने में पुलिस की मदद करने लगा। शातिर अखिलेश दुबे ने इस दौरान पुलिस की अच्छी लिखापढ़ी करने वाले रिटायर मुंशी, दरोगा और इंस्पेक्टरों को अपने यहां नौकरी दे दी और फिर उनसे पुलिस की विवेचनाएं कराने लगा।

शुरुआत में तो कानपुर के हर बड़े केस की फर्द दुबे के दरबार में ही लिखी जाती थी, लेकिन कानपुर में तैनात अफसर दूसरे जिले में गए तो भी दुबे की मदद लेते रहे और दुबे का पूरे प्रदेश में पुलिस महकमे में मकड़जाल तैयार हो गया।

अखिलेश दुबे का आगमन गेस्ट हाउस। इसे भी जिसे भी केडीए के पार्क को कब्जा कर बनाया गया है। लेकिन कोई अधिकारी इस पर बात नहीं करता।

अखिलेश दुबे का आगमन गेस्ट हाउस। इसे भी जिसे भी केडीए के पार्क को कब्जा कर बनाया गया है। लेकिन कोई अधिकारी इस पर बात नहीं करता।

विकास दुबे से लेकर अतीक-अशरफ के मर्डर की फर्द लिखी

कानपुर में सबसे बड़े अपराधियों का डी-2 गैंग का रफीक बड़ा बदमाश था। अखिलेश ने रफीक का जूही यार्ड के पास पुलिस कस्टडी में एनकाउंटर करा दिया। तब दुबे की दहशत ज्यादा कायम हाे गई कि इतने बड़े गैंगस्टर का पुलिस कस्टडी में एनकाउंटर करवा दिया।

जबकि रफीक ने कोर्ट में कहा था कि उसे पुलिस कस्टडी रिमांड पर दिया गया तो उसकी हत्या कर दी जाएगी। इसके बाद अखिलेश ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और दरोगा-इंस्पेक्टर से लेकर कप्तान तक उसके दरबार में आना-जाना शुरू हो गया।

हालात ये हो गए कि दफ्तर के बाहर परमानेंट लाल-नीली बत्ती हूटर बजाते हुए पुलिस अफसरों की गाड़ियां खड़ी रहती थीं। एनकाउंटर हो या शहर को कोई बड़ा मामला उसकी फर्द दुबे के दफ्तर में ही लिखी जाती थी।

जैसे की कानपुर का चर्चित ज्योति मर्डर केस या फिर गैंगस्टर विकास दुबे का एनकाउंटर या फिर प्रयागराज के अतीक-अशरफ का मर्डर हर मामले में पूरे प्रदेश भर के अफसर उसके दरबार में सलाह लेने और फर्द लिखवाने के लिए डेरा डाले रहते थे। पुलिस की कमजोरी काे ही दुबे ने अपनी मजबूत ढाल बना ली।

कानपुर सांसद रमेश अवस्थी और प्रेस क्लब के पूर्व अध्यक्ष अवनीश दीक्षित के साथ अखिलेश दुबे (बीच में)

कानपुर सांसद रमेश अवस्थी और प्रेस क्लब के पूर्व अध्यक्ष अवनीश दीक्षित के साथ अखिलेश दुबे (बीच में)

दुबे के दफ्तर ‘साकेत धाम’ से ही चलने लगा शहर

दुबे ने वर्ष-2000 के करीब साकेत नगर में जगह लेकर अपना दफ्तर बनाया था। इसके बाद वहां पर पुलिस वालों का उठना-बैठना शुरू हो गया। इस दौरान एक केडीए वीसी अखिलेश दुबे पर इस कदर मेहरबान हुए कि कई पार्क उन्हें लीज पर दे दिए।

पार्क में अखिलेश दुबे ने अपना स्कूल और गेस्टहाउस समेत अन्य कारोबार अवैध ढंग से शुरू कर दिया। रसूख बढ़ता गया तो अखिलेश दुबे ने दीप सिनेमा के सामने अपने दफ्तर का और विस्तार कर दिया। इधर 2010 के करीब कानपुर में पहुंचे एक एसएसपी से इतनी नजदीकी बढ़ी की उनका अखिलेश दरबार में ही उठना-बैठना शुरू हो गया।

मानो अघोषित रूप से अखिलेश दुबे ही शहर के कप्तान हो गए थे और पूरा शहर साकेत नगर स्थित दुबे के दफ्तर से ही संचालित होने लगा। इसके बाद अखिलेश दुबे के यहां ट्रांसफर पोस्टिंग के लिए दरोगा-इंस्पेक्टर सैलूट मारने पहुंचने लगे।

फिर ये सिंडीकेट लखनऊ और पूरे प्रदेश तक फैल गया जेल भेजे जाने से पहले तक अखिलेश दुबे प्रदेश के किसी भी बड़े एनकाउंटर पर बतौर स्पेशलिस्ट सलाह देते और जरूरत पड़ती तो बाकायदा पुलिस अफसरों के साथ मौका-मुआयना भी करने जाता था।

यूपी के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री अनंत मिश्रा उर्फ अन्टू के साथ अखिलेश दुबे (काली शर्ट)

यूपी के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री अनंत मिश्रा उर्फ अन्टू के साथ अखिलेश दुबे (काली शर्ट)

पुलिस की आड़ में दुबे ने चलाया फर्जी FIR उद्योग

अखिलेश ने कानपुर शहर में राज करने के लिए फर्जी एफआईआर दर्ज कराना शुरू कर दिया। जो भी कोई अखिलेश की बात नहीं मानता या फिर उसके जमीनों के कारोबार में अड़चन पैदा करता अखिलेश उसके खिलाफ झूठी रेप और एससी, एसटी एक्ट की रिपोर्ट दर्ज करवाकर जेल भिजवा देता था।

इसके चलते दुबे से शहर का हर बड़ा से बड़ा आदमी पंगा लेने से डरता था, क्यों कि पुलिस उसकी जेब में थी। इसके चलते वह किसी को कभी भी रेप में जेल भिजवा देता था। जिसने भी अखिलेश दुबे के खिलाफत की उसका जेल जाना तय था। इस वजह से उससे कोई पंगा नहीं लेता और पूरे शहर में उसकी दहशत थी।

बिल्डर हो गया उद्योगपति या फिर कोई नेता हर कोई उसकी मदद के लिए दरबार में पहुंचता था। कानपुर पुलिस कमिश्नर अखिल कुमार को जब इस फर्जी एफआईआर उद्योग की जानकारी हुई तो उन्होंने सांसद की शिकायत पर एक एसआईटी का गठन किया।

तब पुलिस के सामने 54 ऐसे रेप के मामले आए जिसमें वादिनी का पता ही नहीं चल रहा था। उसमें 10 से 12 ऐसे केस थे जो सीधे तौर पर दुबे से जुड़ रहे थे। ये सभी फर्जी एफआईआर सिर्फ रंगदारी वसूलने, लोगों को ब्लैकमेल करने या फिर जमीन के विवादों को शार्ट आउट करने के लिए दर्ज कराई गई थीं। इसमें एक एफआईआर भाजपा नेता रवि सतीजा की भी थी। जिसमें अखिलेश दुबे को अरेस्ट करके जेल भेजा गया है।

BJP नेता व तीन बार के पूर्व विधायक रहे अजय कपूर (नीली शर्ट) के साथ अखिलेश दुबे (सफेद शर्ट)

BJP नेता व तीन बार के पूर्व विधायक रहे अजय कपूर (नीली शर्ट) के साथ अखिलेश दुबे (सफेद शर्ट)

आईपीएस और पीपीएस अफसर तक छूते थे दुबे के पैर

शायद आपको इस बात पर यकीन नहीं होगा, लेकिन ये बात सच है। अखिलेश दुबे के तमाम सारे आईपीएस और पीपीएस अफसर तक पैर छूते थे। कानपुर में कुछ साल पहले तक तैनात रहे एक आईजी रैंक के अफसर तिवारी जी के कार्यकाल में अखिलेश दुबे को सबसे ज्यादा संजीवनी दी और वह सार्वजनिक तौर पर दुबे के पैर छूते थे।

यह तो एक महज बानगी है, दुबे के यहां हाजिरी लगाने वाले और पैर छूने वाले आईपीएस और पीपीएस अफसरों की बहुत लंबी लिस्ट है। दरोगा इंस्पेक्टर की तो इतनी भारी तादाद है कि उनकी गिनती कर पाना मुश्किल ही नहीं असंभव सा है।

SIT गठित होते ही दुबे ने लड़कियों और महिलाओं को जिले से बाहर भेजा

सांसद अशोक रावत ने रेप की झूठी एफआईआर दर्ज कराने वाले गिरोह की जांच कराने को लेकर पत्र लिखा था। पत्र का संज्ञान लेते हुए पुलिस कमिश्नर अखिल कुमार ने एसआईटी का गठन किया था। एसआईटी का गठन होते ही दुबे ने अपने गैंग में शामिल लड़कियों को झारखंड और छत्तीसगढ़ भिजवा दिया।

एक दर्जन से ज्यादा महिलाएं और लड़कियां उसके गैंग में शामिल थीं। इन लड़कियों का इस्तेमाल वह झूठे रेप के मुकदमे दर्ज कराकर अपने विरोधियों को जेल भिजवाने में इस्तेमाल करता था। पुलिस की जांच में सामने आया कि उस्मानपुर कच्ची बस्ती की लड़कियों और महिलाओं को रुपए देकर रेप की रिपोर्ट दर्ज कराता था।

एक रेप की एफआईआर दर्ज कराने में महिलाओं व लड़कियों को 50 हजार से 1 लाख रुपए तक देता था। पुलिस गैंग में शामिल लड़कियों की तलाश में जुटी हुई है। इन सभी लड़कियों को वह पुलिस और कोर्ट में बचाने का भी काम करता था।

पुलिस ने गुरुवार 7 अगस्त को अधिवक्ता अखिलेश दुबे और लवी मिश्रा को कोर्ट में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया।

पुलिस ने गुरुवार 7 अगस्त को अधिवक्ता अखिलेश दुबे और लवी मिश्रा को कोर्ट में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया।

पुलिस कमिश्नर का PRO निकला अखिलेश का दरबारी

आपको जानकार हैरत होगी कि आखिर एक ऐसा माफिया जिसके हर विभाग के की पोस्ट पर उसके ही आदमी तैनात थे। चाहे वह पुलिस विभाग हो गया फिर केडीए, डीएम ऑफिस व मंडलायुक्त कार्यालय। सभी जगह के अफसर और कर्मचारियों तक उसकी जड़े फैली हुई थीं।

पुलिस कमिश्नर के पैरों तले जमीन उस वक्त खिसक गई जब उन्हें पता चला कि दुबे सिंडीकेट का दरबारी ही उनका पीआरओ है। पुलिस कमिश्नर ऑफिस के पल-पल की सूचनाएं दुबे को देता है। इसके बाद पुलिस कमिश्नर ने उसे हटाया और उसके खिलाफ जांच बैठा दी।

पुलिस कमिश्नर की रिपोर्ट के बाद ही केडीए में 15 से 16 जुलाई के बीच सारे अनुभागों में भारी फेरबदल कर दिया गया था। जहां लंबे समय से एक ही कुर्सी पर जमे 100 कर्मचारी दूसरे अनुभागों में भेज दिए गए वहीं प्रवर्तन की पूरी टीम ही बदल दी गई।

बड़े अफसरों को हटाकर छोटे अफसरों को बड़ी जिम्मेदारी दे गई। इस कार्रवाई के पीछे पुलिस कमिश्नर अखिल कुमार की एक गोपनीय रिपोर्ट भी बड़ी वजह थी जिससे उन्होंने केडीए उपाध्यक्ष को अवगत कराया था। अब चर्चित वकील के मामले जैसे-जैसे खुल रहे हैं वैसे-वैसे उसकी टास्क फोर्स में शामिल लोगों के नाम भी सामने आ रहे हैं।

इसी पत्र के बाद मामले में शुरू हुई एसआईटी जांच। जिसके बाद अधिवक्ता अखिलेश दुबे को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया था।

इसी पत्र के बाद मामले में शुरू हुई एसआईटी जांच। जिसके बाद अधिवक्ता अखिलेश दुबे को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया था।

अब जानिए आखिर दुबे को किस मामले में भेजा गया जेल

पुलिस कमिश्नर ने फर्जी रेप के मुकदमों को लेकर जो एसआईटी गठित की थी, इसमें जांच के दौरान 54 ऐसे मामले सामने आए जो रेप के झूठे मामले थे। सिर्फ लोगों को फंसाने के लिए रेप की रिपोर्ट दर्ज कराई गई थी। जिसमें से करीब 10 से 12 मामले तो सीधे अखिलेश दुबे से जुड़ रहे थे।

इसी में एसआईटी के पास पहुंचा एक मुकदमा भाजपा नेता रवि सतीजा का था। रवि सतीजा के एक संपत्ति विवाद को लेकर दबाव बनाने के लिए अखिलेश दुबे ने झूठा रेप का मुकदमा दर्ज करा दिया। जेल भिजवाने की तैयारी थी, लेकिन सतीजा ने दुबे के पास जाकर हाथ-पैर जोड़कर रुपए देकर समझौता किया।

जब एसआईटी ने जांच शुरू की तो रवि सतीजा ने पूरी सच्चाई बयां कर दी कि अखिलेश दुबे ने ब्लैकमेल करने और रंगदारी वसूलने के लिए उनके खिलाफ झूठा मुकदमा दर्ज कराया था।

हरदोई विधायक आशू सिंह ने भी की थी जमीनों पर कब्जे की शिकायत।

हरदोई विधायक आशू सिंह ने भी की थी जमीनों पर कब्जे की शिकायत।

मुख्यमंत्री के आदेश पर दुबे पर हो सका एक्शन

दुबे की जड़ें शासन-प्रशासन में इतनी मजबूत थीं कि कानपुर पुलिस कमिश्नर का उसे जेल भेजना मुश्किल ही नहीं असंभव सा था। लेकिन कानपुर पुलिस कमिश्नर ने एसआईटी गठित करके जांच शुरू की तो लखनऊ के एक बड़े आईपीएस अफसर तो दीवार बनकर खड़े हो गए।

कमिश्नर अखिल कुमार के पास एक दर्जन से ज्यादा आईपीएस अफसरों ने दुबे के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करने को लेकर पैरवी की। लेकिन अखिल कुमार डिगे नहीं, उनकी कार्रवाई और जांच जरूर धीमीं पड़ गई थी।

जांच के दौरान उन्हें रेप की फर्जी एफआईआर दर्ज कराने का सिंडीकेट, अरबों की जमीनों पर दुबे का कब्जा, कई आईपीएस और पीपीएस अफसरों के साथ दुबे का जमीनों का कारोबार समेत ऐसे-ऐसे साक्ष्य हाथ लगे कि वह भी दंग रह गए।

इतने साक्ष्य होने के बाद भी दुबे पर एक्शन को लेकर लखनऊ में बैठे अफसर राजी नहीं हो रहे थे। इसके बाद मामला मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक पहुंचा। भाजपा नेता रवि सतीजा समेत तमाम सारे लोगों ने गोपनीय ढंग से सीएम से मुलाकात करके अखिलेश दुबे के पूरे सिंडीकेट के बारे में जानकारी दी।

बताया कि अखिलेश दुबे का आईपीएस अफसरों के साथ जमीनों और कई धंधों में पार्टनरशिप है। इस वजह से कोई कार्रवाई करने को तैयार नहीं है। इसके बाद सीएम ने कानपुर पुलिस कमिश्नर अखिल कुमार को लखनऊ में तलब किया।

अखिल कुमार ने सीएम के सामने अखिलेश दुबे का पूरा कच्चा चिट्‌ठा रख दिया। इसके बाद सीएम ने मामले में कड़ी कार्रवाई करने का आदेश दिया। तब जाकर अखिलेश दुबे को अरेस्ट करके पुलिस ने जेल भेजा और उसके सिंडीकेट के खिलाफ एक्शन शुरू हुआ।

भाजपा नेता रवि सतीजा ने आरोप लगाया कि है कि अखिलेश दुबे ने उन पर पॉक्सो की झूठी एफआईआर दर्ज कराई। धमकी देकर 50 लाख रुपए रंगदारी मांग रहा था।

भाजपा नेता रवि सतीजा ने आरोप लगाया कि है कि अखिलेश दुबे ने उन पर पॉक्सो की झूठी एफआईआर दर्ज कराई। धमकी देकर 50 लाख रुपए रंगदारी मांग रहा था।

एक ऐसा वकील जिसने कभी कोर्ट में नहीं की बहस

अखिलेश दुबे एक ऐसा वकील था जिसने कभी कोर्ट में खड़े होकर किसी केस में बहस नहीं की, उसके दरबार में खुद कोर्ट लगती थी और दुबे ही फैसला सुनाता था। ऐसा वकील जो कभी कचहरी नहीं गया और कोर्ट में किसी केस की बहस नहीं की।

सिर्फ अपने दफ्तर में बैठकर पुलिस अफसरों के लिए उनके जांचों की लिखापढ़ी करता था। बड़े-बड़े केस की लिखापढ़ी दुबे के दफ्तर में होती थी। इसी का फायदा उठाकर वह लोगों के नाम निकालने और जोड़ने का काम करता था। इसी डर की वजह से बीते 3 दशक से उसका कानपुर में बादशाहत कायम थी। कोई भी उससे मोर्चा लेने की स्थिति में नहीं था।



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