IITBHU’s device will detect bone cancer | IITBHU का डिवाइस बताएगा हड्डियों का कैंसर: 1 साल में किया गया तैयार, स्मार्टफोन से भी होगा कंट्रोल – Varanasi News
IIT BHU ने हड्डियों के कैंसर को लेकर एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है। IIT बीएचयू ने एक नया सेंसर तैयार किया गया है, जिसके जरिए हड्डियों के कैंसर की प्रारंभिक पहचान हो सकेगी। इसके लिए स्टार्टअप इंडिया के तहत बाकायदा पेटेंट भी दाखिल किया गया है।
.
इस शोध को IIT BHU के स्कूल ऑफ बायोकैमिकल इंजीनियरिंग के एसोसिएट प्रोफेसर प्रो. प्रांजल चंद्रा, के नेतृत्व में उनकी टीम में शोधार्थी दफ़िका एस. दखर और सुप्रतिम महापात्रा ने ये शोध किया है। जिसमें उन्होंने सोने और रेडॉक्स-एक्टिव नैनोमैटेरियल के मिश्रण से एक सेंसर सतह का विकास किया है। इस अनुसंधान को हाल ही में Nanoscale रॉयल सोसायटी ऑफ केमिस्ट्री, कैंब्रिज पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।
डिवाइस बताएगा हड्डियों के कैंसर का पता
IIT BHU के शोधकर्ताओं ने इस रिसर्च में एक ऐसा मिनिएचर बायो इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस तैयार किया है, जो हड्डी के कैंसर की प्रारंभिक अवस्था की पहचान कर सकेगा। यह उपकरण ओस्टियोपॉन्टिननामक एक प्रमुख बायोमार्कर का पता लगाता है, जो ऑस्टियोसारकोमा नामक आक्रामक हड्डी के कैंसर से पीड़ित बच्चों और किशोरों में सामान्यतः अत्यधिक मात्रा में पाया जाता है।

डिवाइस जिसको 1 साल में तैयार किया गया है।
मिल का पत्थर है यह शोध
प्रो. चंद्रा ने बताया कि, यह सेल्फ-रिपोर्टिंग सिस्टम पारंपरिक केमिकल मेडिएटर्स की आवश्यकता को समाप्त करता है और केवल एक बफर सॉल्यूशन के साथ कार्य करता है। यह प्रणाली इतनी सरल और संवेदनशील है कि इसे ग्रामीण प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में भी आसानी से उपयोग में लाया जा सकता है। यह डिवाइस अत्यधिक किफायती, पोर्टेबल और कम संसाधनों में कार्य करने योग्य है। मौजूदा OPN परीक्षण पद्धतियाँ जहां महंगी और समय लेने वाली होती हैं, वहीं यह उपकरण तेज और सटीक जांच की सुविधा प्रदान करता है।

यह टीम डिवाइस को तैयार करने में रही शामिल।
2024 में मिला था पेटेंट
इस तकनीक के लिए 2024 में पेटेंट दायर किया जा चुका है। टीम अब इस प्रोटोटाइप को एक यूज़र-फ्रेंडली डायग्नोस्टिक किट के रूप में विकसित करने की योजना बना रही है, जिसे स्मार्टफोन से जोड़ा जा सकेगा। प्रो. चंद्रा ने कहा कि, हमारा उद्देश्य है कि वर्तमान समय में मौजूद विधियों की जटिलताओं को कम कर सकें. बीमारी के पहचान का समय घटाया जाए और बेस्ट रिजल्ट मिले। यह तकनीक हमारी विभिन्न जैविक मार्करों की पहचान के लिए एक प्लेटफॉर्म टेक्नोलॉजी बन सकती है।